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ज़कात के बारे में ये बाते जानना बहुत ज़रूरी है - zakat ke masail - Ramzan Mubarak - Sunni Muslim

 ज़कात के मसाइल


What is zakat ?


1. ज़कात का मतलब ?

ज़कात के मतलब पाकीज़गी, बढ़ौतरी और बरकत हैं। अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया “उनके माल से ज़कात लो ताकि उनको पाक करे और बाबरकत करे उसकी वजह से और दुआ दे उनको ”

( सूरह तौबा 103 ) 

शरई क़ानून में माल के उस खास हिस्से को ज़कात कहते हैं जिसको अल्लाह तआला के हुकुम के मुताबिक़ फकीरों, मिस्कीनो और ज़रूरतमंदो वगैरह को दिया जाए और उस दिए गए माल का उन्हें मालिक बना दिया जाये


2. ज़कात का हुक्म ?


ज़कात देना फर्ज़ है कुरआन की आयात और नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशादात से ज़कात का फ़र्ज़ होना साबित है। ऐसे में जो शख्स ज़कात के फर्ज़ होने का इंकार करे वो काफिर है।


3. ज़कात फ़र्ज़ कब हुई ?


ज़कात के फ़र्ज़ होने की आयत इस्लाम के शुरुवाती दौर में ही मक्का के अंदर नाज़िल हो चुकी थी इमाम तफसीर इब्ने कसीर ने सूरह मुज़्ज़म्मिल की आयत से इस्तिदलाल फरमाया है। क्योंकि यह सूरत मक्की है और शुरुवाती दौर की वही के ज़माने की सूरतों में से है, इस तरह हदीसों से मालूम होता है कि इस्लाम के शुरुवाती दौर में ज़कात के लिए कोई खास निसाब या खास मिक़दार तय नहीं की गयी थी बल्कि उस टाइम एक मुसलमान की अपनी ज़रूरत से जो माल बच जाता उसका एक बड़ा हिस्सा अल्लाह की राह में खर्च किया जाता था। मालिके निसाब कि हद और ज़कात की मिक़दार का बयान मदीना में हिजरत के बाद हुआ।


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4. ज़कात के फायदे ?


पहले तो आप ये जान लें की ज़कात एक इबादत है ज़कात देना अल्लाह का हुक्म है ज़कात निकालने से हमें कोई फायदा मिले या न मिले ऐसे में अल्लाह का हुक्म होना ही काफी है ज़कात निकालने के लिए जो ज़कात निकालने का असल मकसद है लेकिन मेरे प्यारे मुसलामानों हम पर अल्लाह का करम है की जब कोई बन्दा ज़कात निकालता है तो अल्लाह उसको दुनियावी फायदा भी अता फरमाता हैं  उन फायदों में से एक फायदा ये भी है कि ज़कात निकाल देने से बचे हुए माल में बरकत आती है उसमे इज़ाफा होता है और सारा का सारा माल पाक हो जाता है |


इसलिए कुरआन के ( सूरह बक़रह आयत 276 ) में अल्लाह ने इरशाद फरमाता है “अल्लाह सूद को मिटाता है और ज़कात और सदक़ात को बढ़ाता है ”

एक हदीस है जिसमे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जब कोई बन्दा ज़कात निकालता है तो फ़रिश्ते  उसके हक़ में दुआ करते हैं कि ऐ अल्लाह ! जो शख्स अल्लाह के रास्ते में खर्च कर रहा है उसको और ज़्यादा अता फरमा और ऐ अल्लाह ! जिस शख्स ने अपने माल को रोक कर रखा है और ज़कात अदा नहीं कर रहा है उसके माल पर हलाकत डाल दे 


एक हदीस और है जिसमे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कोई सदक़ा किसी माल में कमी नहीं करता है |


5. ज़कात किस पर फर्ज़ है ?


ज़कात हर उस मुसलमान आक़िल बालिग पर फर्ज़ है जो साहबे निसाब हो लेकिन साहिबे निसाब पर ये शर्त है की उसके पास मौजूद माल उसकी ज़रूरीयात से ज़्यादा हो और उस पर कोई क़र्ज़ न हो साथ ही मौजूद माल पर एक साल का गुज़रना भी ज़रूरी है ये शर्ते जिस पर पूरी होती हो उस पर ज़कात फ़र्ज़ है |

लेकिन आप ये भी जान लें की जिसके पास निसाब से कम माल है या माल तो निसाब के बराबर है लेकिन उस पर क़र्ज़ भी है तो उस पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं , साथ ही मौजूद माल पर साल न गुज़रा हो तो ऐसे शख्स पर भी ज़कात फर्ज़ नहीं है |


6. ज़कात फ़र्ज़ होने के लिए कितना निसाब होना ज़रूरी है ?


जिस इंसान के पास 52.5 तोला चांदी या 7.5 तोला सोना या उसकी क़ीमत का नक़द रूपया या ज़ेवर या तिजारत के लिए सामान मौजूद हो साथ ही उन सब माल पर एक साल गुज़र गया हो तो उसको साहबे निसाब कहा जाता है। साथ ही औरतें के पास मौजूद ज़ेवर पर भी ज़कात देना फ़र्ज़ है अगर वो निसाब को पहुचता हो |


7. कितनी ज़कात अदा की जाए ?


अभी जिन निसाब के बारे में आपने जाना उसपर सिर्फ उसका 40वां हिस्सा यानी सिर्फ ढाई फीसद (2.5%) ज़कात अदा करनी ज़रूरी है |


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8. तिजारत के सामान में कौन कौन सा सामान सामिल है ?


तिजारत के सामान में हर वो चीज़ शामिल है जिसको आपने  बेचने की नियत से खरीदा हो, ऐसे में जो लोग इंवेस्टमेंट की नियत से प्लाट खरीद लेते हैं और उनकी ये सोच होती है कि जब उसकी अच्छी कीमत मिलेगी तो उसको बेच करके उससे फायदा कमाएंगे तो आप ये याद रखें की उस प्लाट पर भी ज़कात देना वाजिब है। लेकिन अगर आपने  प्लाट इस नियत से खरीदा कि अगर मौक़ा हुआ तो उस पर रहने के लिए मकान बनवा लेंगे तो इस सूरत में उस प्लाट की क़ीमत पर ज़कात वाजिब नहीं है।


9. ज़कात के असल हक़दार कौन है ?


  1. फक़ीर - वो शख्स जिसके पास कुछ बहुत थोड़ा माल है लेकिन निसाब के बराबर नहीं 
  2. मिसकीन - वो शख्स जिसके पास कुछ भी न हो 
  3. आमिल - ज़कात वसूल करने के लिए मुस्लिम बादशाह की तरफ से मुक़र्रर शख्स 
  4. गुलाम - ऐसा इंसान जो किसी की गुलामी में फसा हुआ हो |
  5. क़र्ज़दार - यानी वह शख्स जिसके ऊपर बहुत ज्यादा क़र्ज़ हो 
  6. अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाला
  7. मुसाफिर - ऐसा इंसान जो सफ़र में हो और उसके पास किसी वजह से माल ख़त्म हो जाये और वो ज़रूरतमंद हो जाये ऐसे में वो ज़कात ले सकता है |


लेकिन ये बात भी याद रखें :  भाई, बहन, भतीजा, भतीजी, भांजा, चाचा, फूफी, खाला, मामू, सास, ससुर, दामाद वगैरह में से जो हाजतमंद हों उन्हें ज़कात देने में दोगुना सवाब मिलता है  एक सवाब ज़कात का और दूसरा सिला रहमी का

नोट : अगर आप किसी को बगैर बताये ज़कात देना चाहे तो उसे तोहफे के नाम से भी दे सकते है ज़कात अदा हो जाएगी |


10.ज़कात न निकालने पर वईद


सूरह तौबा आयत 34-35 में अल्लाह तआला ने उन लोगों के लिए बड़ी सख्त वईद फ़रमायी है जो अपने माल की ज़कात नहीं निकालते। उनके लिए बड़े सख्त अल्फाज़ में खबर दी है और फरमाया कि जो लोग अपने पास सोना चांदी जमा करते हैं और उसको अल्लाह के रास्ते में खर्च नहीं करते तो ( ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) आप उनको एक दर्दनाक अज़ाब की खबर दे दीजिए यानी जो लोग अपना पैसा रूपया अपना सोना चांदी जमा करते जा रहे हैं और उनको अल्लाह के रास्ते में खर्च नहीं करते उनको अल्लाह ने जो हुक्म दिया है उसको अदा नहीं करते, उनको बता दीजिए कि एक दर्दनाक अज़ाब उनका इंतेजार कर रहा है।

फिर दूसरी आयत में उस दर्दनाक अज़ाब की तफसील ज़िक्र फ़रमायी कि यह दर्दनाक अज़ाब उस दिन होगा जिस दिन सोने और चांदी को आग में पिघलाया जाएगा और फिर उस आदमी की पेशानी और उसकी पुशत को दागा जाएगा और उससे ये कहा जाएगा कि ये है वो खज़ाना जो तुमने अपने लिए जमा किया था आज तुम अपने खज़ाने का मज़ा चखो जो तुम अपने लिए जमा कर रहे थे। अल्लाह तआला हम सबको ख़तरनाक अज़ाब से महफूज़ फरमाए आमीन।


हदीस शरीफ : एक हदीस में हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जब माल में ज़कात की रक़म शामिल हो जाए यानी पूरी ज़कात नहीं निकाली बल्कि कुछ ज़कात निकाली और कुछ रह गई तो वह माल इंसान के लिए तबाही और हलाकत का सबब बनता है लिहाज़ा इस बात को हमेशा याद रखो कि एक एक पाई का सही हिसाब करके ज़कात अदा करो।


11. ज़कात से मुतअल्लिक़ कुछ और मसाइल


  1. ज़कात जिसको दी जाए उसे यह बताना कि यह माल ज़कात है ज़रूरी नहीं बल्कि किसी गरीब के बच्चों को ईदी या किसी और नाम से दे देना भी काफी है।
  2. दीनी मदारिस में गरीब तालिब इल्म के लिए ज़कात देना जायज़ है।
  3. ज़कात की रक़म मसाजिद, मदारिस, अस्पताल, यतीमखाने और मुसाफिर खाने की तामीर में खर्च करना जाएज़ नहीं है।
  4. अगर औरत भी साहबे निसाब है तो उसपर भी ज़कात फर्ज़ है, अलबत्ता शौहर खुद ही औरत की तरफ से भी ज़कात की अदाएगी अपने माल से कर दे तो ज़कात अदा हो जाएगी।

दावा तो है की दीन पर सब कुछ लुटाएँगे |
लेकिन ज़कात देना भी अब लग रहा है बोझ ||

मोहम्मद फ़य्याज़ मिस्बाही इलाहाबादी

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