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मुसलमानों के बदतर हालात की छोटी सी कहानी - पढ़े ज़रूर - sunni muslim

मुसलमानों के इस बदतर हालात की वजह समझो 


जब भी मुसलमानो पर हो रहे ज़ुल्म उनके साथ हो रही ज़्यादतियों बारे में कोई फिक्रमंद बात करता है तो कौम के कुछ ज़िम्मेदार ख़ास करके हमारे उलमा हज़रात एक ही बात कहते है।

"ये जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है हमें हर जगह मारा काटा जा रहा हमें रुसवा किया जा रहा है सब हमारेआमाल की सजा है नमाज़ पढ़ो और रोज़े रखो " 

इस तरह की बाते कहते हुए लगभग बहुत से लोग आपको मिल जायेंगे और यक़ीनन मिले भी होंगे | 
लेकिन जो लोग इस तरह की बात कहते हैवो लोग ये नहीं बताते के ज़ुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए इस्लाम ने क्या तरीक़ा बताया है। 

जब हम नमाज़ के बाद रोज़ी के लिए बरकत की दुआ करते है तो क्या आसमान से नोटों की बारिश शुरू हो जाती है ? नहीं 
हमे दुआ के बाद दुकान, ऑफिस, नौकरी या कारखाने जाकर रोज़ी में बरकत के लिए मेहनत करनी पड़ती है। तब जाकर हमे रोज़ी मिलती है |

इसी तरह ज़ुल्म के खात्मे के लिए दोनों काम ज़रूरी है नमाज़ भी , रोज़ा भी और ज़ालिम का मुकाबला भी अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने फरमाया "उंट को बांधो और अल्लाह पर तवक्कल करो " यानि अल्लाह पर यकीन रखो की आपका ऊँट कहीं जायेगा नहीं
"उंट" को खुला छोड़कर अल्लाह पर तवक्कल करने को नहीं कहा"

नमाज़ ज़रूर पढ़ना है लेकिन ज़ालिम के खिलाफ कोशिश भी जरूरी है क्योंकि नमाज़ तो जंग में भी पढ़नी है।अगर मुसल्ले पर ही सारे मसले हल हो जाते तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और सहाबा  कभी मैदाने जंग में ना उतरते अल्लाह ने कुरआन में फरमाया है |
"जो कौम खुद की हालत ना बदलना चाहे अल्लाह भी उस कौम की हालत नहीं बदलता"

हज़रत अली का एक कौल है :

"जो कौम ज़ुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठाती वो कौम सिर्फ लाशे उठाती है"
मुसलमानो को ये आयात और कौल का मतलब अब अच्छे से समझने की जरूरत है।




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