रमज़ान के इन मसलो को जानना बहुत ज़रूरी है आपके लिए
लेकिन उससे पहले आप रोज़े रखो तो इन चार बातो को अपने दिमाग में ज़रूर रख लो |
- Kin logo par roze farz hai ? / किन लोगो पर रोज़ा फर्ज़ है ?
- Kin logo ke roze maaf hai ? / किन लोगो के रोज़े माफ़ है ?
- Musafir ke liye roze ka huqm ? / मुसाफिर के लिए रोज़े का हुक्म ?
- Roze ka fidiya ? / रोज़े का फिदिया ?
जो शख़्स बुढ़ापे की वजह से इतना कमजोर हो गया हो कि उसमें रोज़ा रखने की ताकत नहीं हो और आइंदा सही होने की भी कोई उम्मीद नहीं उस पर रोज़े माफ हैं । लेकिन हर रोज़े के बदले फ़िदया देना उस पर वाजिब है । और फिदया यह है कि हर रोज़े के बदले एक मोहताज को दोनों वक़्त पेट भरकर खाना खिलायें या हर रोज़े के बदले सदक़ा-ए-फ़ितर के बराबर गल्ला या रूपया ख़ैरात करे । जो ज़्यादा सही तहकीक के मुताबिक तकरीबन 2 किलो 45 ग्राम गेहूँ है ।
आजकल सही मआनि में ज़रूरत मन्द मोहताज व मिसकीन नही मिलते आम तौर पर पेशावर फकीर हैं उनमें भी ज्यादातर बे नमाज़ी फ़ासिक व बदकार, गुन्डे लफंगे जुआरी और शराबी तक हैं लेहाजा दीनी मदरसों के तलबा और जरूरतमन्द मुस्तहक मस्जिदों के इमामों मोअज्जिनों को इस किस्म की रकमें या गल्ले दे दिये जायें तो ज़्यादा बेहतर है।
वह औरतें जिनके शौहर इन्तिकाल कर गये हो और उन्होने दूसरा निकाह भी न किया हो
ऐसे ही वह घर जिनमें एक ही कमाने वाला था वह भी बीमार हो गया इस किस्म के लोग अगर साहिबे जायेदाद न हों , सदकात व ख़ैरात ज़कात के मुस्तहक हों तो ऐसों को तलाश करके देना चाहिये | पेशावर और मांगने वालों से ऐसे ज़रूरतमन्दों को देना ज़्यादा सवाब का काम है। और उन लोगों को भी लेने में शर्म नही करना चाहिये आजकल कुछ लोगों को देखा जाता है कि वह बेईमानी ख़यानत और कर्ज व उधार लेकर न देने के आदी हैं लेकिन अगर कोई ज़कात सदका ख़ैरात या फिदये की रकम दे तो इस को लेने में अपनी तौहीन समझते हैं, ये उसकी भूल है।
अगर कोई शख़्स ज़कात, फ़ितरह, सदका वगैरह व ख़ैरात का मुस्तहक और ज़रूरत मन्द हो लेकिन लेने में शर्म महसूस करे तो उसको बताया न जाये कि यह ज़कात है , खैरात है , हदिया या तोहफा वगैरह जिस नाम से चाहे देदे आपकी ज़कात, फ़िदया, क़फ्फारा अदा हो जाएंगे ।
और जिस बूढ़े के तन्दुरुस्त होने की उम्मीद न हो और साथ ही गरीब व नादार हो फिदया देने की हैसियत न रखता हो उस को चाहिए कि तौबा व इस्तिग़फ़ार करता रहे उसके लिए रोज़े माफ़ हैं ।
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