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Ramzan 2022 - रमज़ान के रोज़े रखो लेकिन ये चार बात ज़रूर जान लो - Ramzan ke Masle - Sunni Muslim

 रमज़ान के इन मसलो को जानना बहुत ज़रूरी है आपके लिए 


Ramzan 2022


 रमज़ान मुबारक आ चुका है | ये महीना मुसलमानों के लिए अल्लाह का एक बेहतरीन तोहफा है | यही वो मुबारक महीना है जिसमे एक नेकी 70 नेकी के बराबर होती है | जिस तरह दुनियावी मॉल वगैरह में इंसानों को एक के बदले 2 और 2 बदले 4 का ऑफर दिया जाता है | उसी तरह रब्बल आलेमीन ने हम सबको एक के बदले 70 का एक बेहतरीन ऑफर दिया है | जो 1 रमज़ान से शुरू हो कर आखरी रोज़े तक रहता है | लिहाज़ा हमें ये चाहिए की इस मुबारक महीने का खूब खूब फायदा उठाये ... और अल्लाह की रज़ा के लिए नेक काम करे , इबादत करे, सदका , ज़कात जैसी चीजों को उनके हक़दार तक पहुचाये इखलास के साथ ... न की रियाकारी करते हुए .. 

लेकिन उससे पहले आप रोज़े रखो तो इन चार बातो को अपने दिमाग में ज़रूर रख लो |

  • Kin logo par roze farz hai ? / किन लोगो पर रोज़ा  फर्ज़ है ?
हर मुसलमान मर्द औरत जो समझदार और बालिग हो उस पर रमज़ान के रोज़े फर्ज है | 

  • Kin logo ke roze maaf hai ? / किन लोगो के रोज़े माफ़ है ?
नाबालिग बच्चे और पागल पर रोज़े फर्ज नही हैं । औरतों को उनके महावारी  के दिनों में रोज़े रखने की इजाज़त नहीं है | रमज़ान के बाद इन रोज़ों की कज़ा करे जो कमज़ोर औरत हमल यानि पेट से हो या बच्चे को दूध पिलाती हो और रोज़े रखने की वजह से अपनी या बच्चे की जान जाने या सख्त बीमारी का खतरा महसूस करे वह रोज़े कज़ा कर सकती है | यूं ही हर बीमार और कमज़ोर आदमी रमज़ान के रोज़े रखने की वजह से खतरनाक बीमारी होने या जान जाने का सही गुमान करे उसको भी रोज़ा कज़ा करने की इजाज़त है।




  • Musafir ke liye roze ka huqm ? / मुसाफिर के लिए रोज़े का हुक्म ?
जो शख़्स शरअन मुसाफ़िर है उसको कुरआन व हदीस में रमज़ान के रोज़े न रखने की इजाज़त दी गई है लेकिन सफ़र में अगर आराम हो कोई ख़ास परेशानी न हो तो रोज़ा रख लेना ही बेहतर है हाँ अगर न रखे तब भी वह गुनाहगार नहीं है जबकि रमज़ान के बाद कज़ा कर ले।

  • Roze ka fidiya ? / रोज़े का फिदिया ? 

जो शख़्स बुढ़ापे की वजह से इतना कमजोर हो गया हो कि उसमें रोज़ा रखने की ताकत नहीं हो और आइंदा सही होने की भी कोई उम्मीद नहीं उस पर रोज़े माफ हैं । लेकिन हर रोज़े के बदले फ़िदया देना उस पर वाजिब है । और फिदया यह है कि हर रोज़े के बदले एक मोहताज को दोनों वक़्त पेट भरकर खाना खिलायें या हर रोज़े के बदले सदक़ा-ए-फ़ितर के बराबर गल्ला या रूपया ख़ैरात करे । जो ज़्यादा सही तहकीक के मुताबिक तकरीबन 2 किलो 45 ग्राम गेहूँ है ।

आजकल सही मआनि में ज़रूरत मन्द मोहताज व मिसकीन नही मिलते आम तौर पर पेशावर फकीर हैं उनमें भी ज्यादातर बे नमाज़ी फ़ासिक व बदकार, गुन्डे लफंगे जुआरी और शराबी तक हैं लेहाजा दीनी मदरसों के तलबा और जरूरतमन्द मुस्तहक मस्जिदों के इमामों मोअज्जिनों को इस किस्म की रकमें या गल्ले दे दिये जायें तो ज़्यादा बेहतर है। 

वह औरतें जिनके शौहर इन्तिकाल कर गये हो और उन्होने दूसरा निकाह भी न किया हो

ऐसे ही वह घर जिनमें एक ही कमाने वाला था वह भी बीमार हो गया इस किस्म के लोग अगर साहिबे जायेदाद न हों , सदकात व ख़ैरात ज़कात के मुस्तहक हों तो ऐसों को तलाश करके देना चाहिये | पेशावर और मांगने वालों से ऐसे ज़रूरतमन्दों को देना ज़्यादा सवाब का काम है। और उन लोगों को भी लेने में शर्म नही करना चाहिये आजकल कुछ लोगों को देखा जाता है  कि वह बेईमानी ख़यानत और कर्ज व उधार लेकर न देने के आदी हैं लेकिन अगर कोई ज़कात सदका ख़ैरात या फिदये की रकम दे तो इस को लेने में अपनी तौहीन समझते हैं, ये उसकी भूल है।

अगर कोई शख़्स ज़कात, फ़ितरह, सदका वगैरह व ख़ैरात का मुस्तहक और ज़रूरत मन्द हो लेकिन लेने में शर्म महसूस करे तो उसको बताया न जाये कि यह ज़कात है , खैरात है , हदिया या तोहफा वगैरह जिस नाम से चाहे देदे आपकी ज़कात, फ़िदया, क़फ्फारा अदा हो जाएंगे ।

और जिस बूढ़े के तन्दुरुस्त होने की उम्मीद न हो और साथ ही गरीब व नादार हो  फिदया देने की हैसियत न रखता हो उस को चाहिए कि तौबा व इस्तिग़फ़ार करता रहे उसके लिए रोज़े माफ़ हैं ।




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