इस्लाम में निकाह को लेकर जात बिरादरी का सच
अकसर लोग निकाह के लिये अपने ही बिरादरी मे लड़का या लड़की को पसन्द करते हैं और जब तक अपनी बिरादरी मे कोई नही मिलता निकाह नही करते| जिसके वजह से अकसर दूसरे बिरादरी के लड़के और लड़किया बगैर शादी काफ़ी उम्र तक बैठे रहते हैं और कितनो की तो पूरी ज़िन्दगी शादी ही नहीं होती | जबकि इसको लेकर साफ़ साफ़ अल्लाह का फरमान कुरान में मौजूद है | अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं
" और उसने दो ज़ात बनाई एक मर्द और एक औरत "
( सूरह कियामह आयत नं 39 )
इस्लाम में जाती मज़हब जैसा कुछ नहीं है |
निचे दिए गए इस्लामिक अशिया से अपने घर को सजाएं
इस्लाम की ये खूबी हैं के इस्लाम मे इन्सान कि ज़रुरत के हिसाब से उसके हर मसले हर परेशानी का हल मौजूद है किसी मसले के हल के लिये बस इन्सान को अल्लाह और उसके रसूल के बताये गे रास्तो पर अमल करना हैं। बावजूद इसके लोग इस्लाम के बताये तेरीको से फ़ायदा नही उठाते और नुकसान मे रहते हैं। अल्लाह ने इन्सान कोपैदा करने के लिये सिर्फ एक जोड़ा आदम अलैहिस्सलाम और बीवी हव्वा को बनाया और इनसे तमाम इंसानी नस्ल को पैदा फरमाया अगर अल्लाह ने ज़ात बिरादरी की बन्दीश को भी इन्सान के निकाह के शर्त के तौर पर लगाया होता तो आदम और बीवी हव्वा के बाद दुनिया मे कोई इन्सान नही होता या अल्लाह कई आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा की तरह कई और जोड़े पैदा कर दुनिया मे एक सिस्टम बना देता के हर इन्सान अपनी ही पुरखो की नस्ल मे निकाह करता इसके लिए आदम अलैहिस्सलाम और बीवी हव्वा की तरह जोड़े पैदा करना अल्लाह के लिये कोई मुश्किल काम नही | इतनी सहूलियात के बाद भी इन्सान इन तमाम बातो पर गौर फ़िक्र किये बगैर ही इस अहम सुन्नत निकाह को अदा करने मे देरी करता हैं। अल्लाह ने कुरान मे एक जगह और फ़रमाया है |
" ऐ लोगो अल्लाह से डरो जिसने तुम्हे एक जान से पैदा किया और उसी मे से उसके लिये जोड़ा पैदा किया और उन दोनो से बहुत से मर्द और औरत फ़ैला दिये "
( सूरह निसा आयत नं 1 )
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कुरान की इस आयत से साबित हैं के अल्लाह ने हर मर्द और औरत का जोड़ा बनी आदम की औलादो मे से ही रखा हैं लिहाज़ा हर इन्सान को जो ईमान वाला मर्द या औरत मिले उसे बिना देरी के निकाह कर ले। क्योकि किसी इन्सान को खुद से ये हासिल नही के ज़ात बिरादरी मे बट जाये बल्कि ज़ात बिरादरी मे बाटना भी अल्लाह ही का काम हैं जैसा के कुरान से साबित हैं
" अल्लाह वही हैं जिसने इन्सान को पानी से पैदा किया फ़िर उसे नस्ली और खान्दानी रिश्तो मे बाट दिया "
( सूरह फुरकान आयत नं 54 )
लिहाज़ा जात बिरादरी जैसे फ़िज़ूल बातों को निकाह जैसे नेक काम से जोड़ना सरासर गलत हैं क्योकि अल्लाह ने नस्ल और खानदान सिर्फ इन्सान की पहचान बाकि रखने के लिये किया न के निकाह के मौके पर अपने से दूसरे को नीचा या बड़े खानदान की सोच रखना सरासर गलत हैं | बिरादरी का तसव्वुर सिर्फ इन्सान को बड़ा या छोटा साबित करता हैं जबकि ये अल्लाह ही बेहतर जानता है कि उसके नज़दीक कौन बड़ा या छोटा हैं।
बिरादरी से बाहर निकाह करने की सबसे बड़ी मिसाल हज़रत अबदुर्ररहमान बिन ओफ़ का निकाह हैं जो कुरेश खानदान से थे और उन्होने अंसार की लड़की से निकाह किया था और खुद अल्लाह के रसूल सल्लालाहू अलेहे वसल्लम ने हज़रत सफ़िया से निकाह किया था जो कुरैश खानदान से नही थी |
इसलिए मेरे मुसलमान भाइयो इस्लाम कोई ऐसा मज़हब नहीं जो किसी की ज़िन्दगी में मुश्किलें पैदा करें इस्लाम तो ऐसा मज़हब है जो बिलकुल सीधा और सच्चा है | इसमें जात बिरादरी का कोई दखल ही नहीं है |
" और उसने दो ज़ात बनाई एक मर्द और एक औरत "
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" अल्लाह वही हैं जिसने इन्सान को पानी से पैदा किया फ़िर उसे नस्ली और खान्दानी रिश्तो मे बाट दिया "
( सूरह फुरकान आयत नं 54 )
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