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कहीं शबनम कहीं चश्में रवां ज़मज़म कहीं नहरें
उन्हीं के दम से आलम में मुनव्वर सारे गुलशन हैं
तमन्नाओं का मर्क़ज़ है मोहब्बत का वो मसकन है
मोहम्मद नाम है जिनका मेरा तन मन मेरा धन है
इसी उम्मीद में उक़बा की खेती में है शादाबी
करम के अबरे बारां हैं शफ़ाअत के वो सावन है
कहीं शबनम कहीं चश्में रवां ज़मज़म कहीं नहरें
उन्हीं के दम से आलम में मुनव्वर सारे गुलशन हैं
झलक जिसने भी पायी रूए अनवर की वो कह उठा
ये जाते शाहे खूबां हैं ये सुन्दरता के दर्पण हैं
मदीने के ही खुर्शीदे मुबीं की है ज़या पहुंची
जो जैसे जिस तरह जिस हाल में जितने भी रौशन हैं
गदाई मुझको भी फ़य्याज़ उस चौखट की हासिल है
जहाँ फैले हुए शाहाने आलम के भी दामन हैं
सरकार की आमद मरहबा , आक़ा की आमद मरहबा , रहबर की आमद मरहबा , मदनी की आमद मरहबा
आमदे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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