शबे बरात क्या है ? शबे बरात क्यों मनाया जाता है ?
शबे बरात को लेकर बहुत से सवाल लोगो के दिमाग में आते है .. जैसे शबे बरात क्या है ? शबे बरात क्यों मनाया जाता है ? शबे बरात की हकीक़त क्या है ? शबे बरात की रात क्या करना चाहिए ? तो आइये आज के इस पोस्ट में इन सवालों का जवाब आपको बताते है
पहले ये जान लो … शबे बरात शाबान महीने की 15वीं रात को मनाया जाता है | शाबान इस्लामिक साल का 8वां महीना है | शाबान का मतलब होता है जमा करना या अलग करना | अल्लाह के प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते है | शाबान मेरा महीना है | रजब अल्लाह का महीना है और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है | शाबान गुनाहों को मिटाने वाला महीना है और रमज़ान गुनाहों से पाक करने वाला महीना है | अल्लाह के प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रमज़ान के बाद सबसे ज्यादा रोज़े शाबान महीने में रखा करते थे |
- शबे बरात का मतलब क्या है ?
निचे दिए गए इस्लामिक अशिया से अपने घर को सजाएं
अल्लाह पाक इस रात अपनी रहमत से अपने बंदों को बख्श देता है। लेकिन शिर्क करने वाले अपने भाई से दुश्मनी रखने वालों को नहीं बक्शता। इस रात तौबा करने वालो की तौबा कुबूल की जाती हैं। रोज़ी में बरकत की दुआ करने वालो की रोज़ी में बरकत अता की जाती हैं। बीमारों के लिए दुआ मांगने पर बीमारों को बीमारी से शिफा दी जाती हैं।
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इस रात कब्रिस्तान जाना फातिहा पढ़ना इसाले सवाब करना और दुआए मगफिरत करना सुन्नत है। हदीस शरीफ में है, जो आदमी 11 बार कुल हुवल्लाह शरीफ पढ़ कर उसका सवाब मुर्दो की रूहों को पहुंचाएं तो मुर्दो को सवाब पहुँचाने के साथ ही पढ़ने वाले को मुर्दो की तादात के बराबर सवाब मिलता है । इस रात बेरी के 7 पत्ते पानी में उबालकर उस पानी से नहाए तो इंशाल्लाह साल भर तक जादू टोने के असर से आप महफूज़ रहेंगे।
इस रात कब्रिस्तान जाना फातिहा पढ़ना इसाले सवाब करना और दुआए मगफिरत करना सुन्नत है। हदीस शरीफ में है, जो आदमी 11 बार कुल हुवल्लाह शरीफ पढ़ कर उसका सवाब मुर्दो की रूहों को पहुंचाएं तो मुर्दो को सवाब पहुँचाने के साथ ही पढ़ने वाले को मुर्दो की तादात के बराबर सवाब मिलता है । इस रात बेरी के 7 पत्ते पानी में उबालकर उस पानी से नहाए तो इंशाल्लाह साल भर तक जादू टोने के असर से आप महफूज़ रहेंगे।
- शब-ए-बरात पर क्या ज़रूरी काम करना चाहिए?
शब-ए-बरात की रात बहुत मुबारक रात मानी जाती हैं। इस रात को इबादत की रात कहा जाता हैं। इसलिए इस रात को नीचे बताये कुछ ज़रूरी कामों को ज़रूर करना चाहिए। जो इस तरह हैं।
- कब्रिस्तान जाकर मुर्दो के लिए इसाले सवाब और दुआए मगफिरत की जाए।
- इस रात को शब्न बेदारी करें | नफ्ल नमाज पढ़ने तिलावत करने और दुरूद व दुआ पढ़ने के साथ अपने गुनाहों से तौबा करने में बितायी जाए ताकि अल्लाह की रहमत हमारे गुनाहों पर पर्दा डालकर हमें दोज़ख की आग से बरी होने का हकदार बना दे |
- इस रात इबादत में गुजारने के बाद दिन में रोजा रखा जाए यह सुन्नत है।
इसके अलावा इसाले सवाब के लिए कुछ मीठी चीजें बनवाना, फातिहा कराना , खाना खिलाना व तोहफे पेश करने में कोई हर्ज नहीं | लेकिन इसे पटाखों का त्यौहार समझना नादानी है। जो सरासर नाजायज़ और हराम है। इस रात में अल्लाह पाक बनी कल्ब की बकरियों के बाल की तादात के बराबर गुनाहगारों को जहन्नम से आज़ाद फरमा देता है। लेकिन काफिर, दुश्मनी रखने वाले, रिश्ता तोड़ने वाले, मां बाप की नाफरमानी करने वाले और शराब पीने वालों पर रहम नहीं फरमाता। ऐसे लोगों की बख्शिश नहीं होती।
शब-ए-बरात की रात बहुत मुबारक रात मानी जाती हैं। इस रात को इबादत की रात कहा जाता हैं। इसलिए इस रात को नीचे बताये कुछ ज़रूरी कामों को ज़रूर करना चाहिए। जो इस तरह हैं।
- कब्रिस्तान जाकर मुर्दो के लिए इसाले सवाब और दुआए मगफिरत की जाए।
- इस रात को शब्न बेदारी करें | नफ्ल नमाज पढ़ने तिलावत करने और दुरूद व दुआ पढ़ने के साथ अपने गुनाहों से तौबा करने में बितायी जाए ताकि अल्लाह की रहमत हमारे गुनाहों पर पर्दा डालकर हमें दोज़ख की आग से बरी होने का हकदार बना दे |
- इस रात इबादत में गुजारने के बाद दिन में रोजा रखा जाए यह सुन्नत है।
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इस रात का फैज़ हासिल करने के लिए चाहिए कि अपने गुनाहों से सच्ची तौबा करें। अगर मां-बाप नाराज़ है तो उन्हें खुश किया जाए क्योंकि जब तक वह राज़ी नहीं होंगे तब तक अल्लाह राज़ी नहीं होगा। किसी दीनी भाई से मनमुटाव हो गया हो या सलाम कलाम बंद हो तो मेल मिलाप करके गलतफहमी दूर करके आपस में मोहब्बत कायम करी जाए । फिर अपने रब से रहम व करम और मगफिरत की दुआ मांगी जाये इस यकीन के साथ की अल्लाह पाक हमें भी इसके फैज़ से मालामाल फरमाएगा।
इस रात का फैज़ हासिल करने के लिए चाहिए कि अपने गुनाहों से सच्ची तौबा करें। अगर मां-बाप नाराज़ है तो उन्हें खुश किया जाए क्योंकि जब तक वह राज़ी नहीं होंगे तब तक अल्लाह राज़ी नहीं होगा। किसी दीनी भाई से मनमुटाव हो गया हो या सलाम कलाम बंद हो तो मेल मिलाप करके गलतफहमी दूर करके आपस में मोहब्बत कायम करी जाए । फिर अपने रब से रहम व करम और मगफिरत की दुआ मांगी जाये इस यकीन के साथ की अल्लाह पाक हमें भी इसके फैज़ से मालामाल फरमाएगा।
यह रात तौबा इस्तिगफार की रात है इसलिए हमें चाहिए कि हम इसकी कद्र करें इसकी अहमियत समझे और अपने गुनाहों से माफी मांगे,तौबा करे और तौबा पर कायम रहने की नियत भी रखें।
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