जिसे भी आपके दर से अता पैमाना हो जायेवो फिर सारे ज़माने से शहा बेगाना हो जाये
जनाब मौलाना अज़ीमुल्लाह रिज़वी इलाहाबादी साहब की लिखी बहुत ही बेहतरीन नात
जिसे भी आपके दर से अता पैमाना हो जाये
वो फिर सारे ज़माने से शहा बेगाना हो जाये
अगर क़ाबे का रुख भी जानिबे मैखाना हो जाये
शराबे इश्क पीकर ये जहाँ मस्ताना हो जाये
बनाया हुश्न का पैकर खुदाया मेरे आक़ा को
जो देखे एक झलक सरकार की दीवाना हो जाये
परीशां हाल है उम्मत तुम्हारी या रसूलल्लाह
करम की एक नज़र बहरे खुदा जानाना हो जाये
बचाना लाज रब के सामने आक़ा ग़ुलामों की
बरोज़े हश्र उम्मत या नबी रुसवा ना जाये
तुम्हे है वास्ता जाबिर की दावत का मेरे आक़ा
मेरा घर भी तुम्हारे क़दमों से रेहाना हो जाये
हिदायत दे खुदा मुझको रहे सरकार से उल्फत
शिकारे आतिशे असियाँ बनू ऐसा न हो जाये
अज़ीम कादरी रब से दुआ करता है बस इतन
मदीने पाक में इसका भी एक काशाना हो जाये
अज़ मौलाना अज़ीमुल्लाह रिज़वी इलाहाबादी
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