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Ramzan: Sabr Ki Mehnat Aur Shukr Ki Mithaas - sunni muslim

 

रमज़ान में सब्र और शुक्र का इज़ाफ़ा: रूहानीं तरक्की की राह



तारीफ़


रमज़ान सिर्फ़ रोज़ा और इबादत का महीना नहीं, बल्कि ख़ुद कि बेहतरी  और रूहानीं तरक्की का सुनहरा मौक़ा है। इस पाक महीने में सब्र (धैर्य) और शुक्र (कृतज्ञता) का जज़्बा पैदा करना बहुत ज़रुरी  होता है। यह मज़मून(लेख) रमज़ान में सब्र और शुक्र की अहमियत, फ़ायदे और उनके ज़िन्दगी पर पड़ने वाले निस्बत
 पर रोशनी डालेगा




सब्र (धैर्य) का अहमियत रमज़ान में


1. सब्र का सही मतलब:

सब्र का मतलब सिर्फ़ मुश्किल को बर्दाश्त करना ही नहीं, बल्कि उन्हें खुशी-खुशी अल्लाह की रज़ा के लिए क़ुबूल करना भी है।

2. रोज़ा और सब्र:

रोज़ा हमें ख़ुद पर क़ाबू रखना सिखाता है। भूख, प्यास और दुनिया की ख्व़ाहिशात पर क़ाबू पाने के लिए इंसान के अंदर सब्र पैदा होता है।

3. जिंदगी में सब्र की अहमियत:

रमज़ान में सीखा गया सब्र ज़िंदगी के हर हिस्से में मदद करता है, चाहे वह नौकरी हो, रिश्ते हों, या कोई दूसरा सूरत-ए-हाल।




शुक्र (कृतज्ञता) की अह्मियात रमज़ान में


1. शुक्र का सही मतलब:

शुक्र का मतलब सिर्फ "अल्हम्दुलिल्लाह" कहना नहीं, बल्कि दिल से अल्लाह की दी हुई हर नेमत को क़ुबूल करना और उसका सही इस्तेमाल करना है।


2. रमज़ान और शुक्र:

रमज़ान में हमें यह एहसास होता है कि भूख और प्यास क्या होती है। इस एहसास से हमें उन लोगों के लिए शुक्र अदा करने का सबक़ मिलता है जिनके पास बुनियादी सुहूलत भी नहीं हैं।


3. अल्लाह की नेमतों का एहसास:

रोज़ा रखने से हमें अल्लाह की दी गई हर छोटी-बड़ी चीज़ की अहमियत समझ में आती है और हम ज़्यादा शुक्र गुज़ार बनते हैं।




सब्र और शुक्र का ज़िंदगी में असर


ज़हनी सुकून: सब्र रखने से इंसान का गुस्सा कम होता है और शुक्र अदा करने से खुशी और भरोसा बढ़ता है।


ताल्लुक़ात को बेहतर बनाना : सब्र और शुक्र ताल्लुक़ात को मीठा करता है और तनाव को कम करता है।


रूहानी तरक्की: अल्लाह के करीब जाने के लिए सब्र और शुक्र दोनों ही जरूरी हैं।




कैसे बढ़ाएं सब्र और शुक्र रमज़ान में


रोज़े की हालत में सब्र रखें और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा न करें।
हर रोज़ अल्लाह का शुक्र अदा करें कि उसने आपको रोज़ा रखने की ताक़त दी।
रमज़ान में गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करें, इससे शुक्रगुज़ारी का जज़्बा बढ़ेगा।

नमाज़ और दुआ के ज़रिए अल्लाह से सब्र और शुक्र की ताक़त माँगें।



नतीजा

रमज़ान हमें सिर्फ इबादत ही नहीं सिखाता, बल्कि सब्र और शुक्र के ज़रिए हमें एक बेहतर इंसान भी बनाता है। इस पाक महीने में हमें अपनी ख्व़ाहिशात पर क़ाबू रखते हुए सब्र और शुक्र को अपनाना चाहिए, ताकि रमज़ान का असली मकसद पूरा हो सके।

 

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