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कैसे रमज़ान हमारे दिल और रूह को नूरानी बनाता है - sunni muslim

 


रमज़ान के रोज़े से रूह की सफ़ाई:--

रमज़ान-उल-मुबारक अल्लाह तआला का एक अज़ीम तोहफ़ा है, जो सिर्फ़ जिस्मानी इबादत का महीना नहीं, बल्कि रूहानी सफ़ाई का भी एक बेहतरीन ज़रिया है। यह महीना सिर्फ़ भूख और प्यास सहने का नाम नहीं, बल्कि अपनी रूह को पाक और क़ल्ब को नूरानी बनाने का एक तरीक़ा है। रोज़ा इंसान के अंदर तक़वा, सब्र और शुक्र की आदत डालकर उसे अल्लाह के क़रीब करता है।


रोज़ा और रूहानी तज़किया:--

रोज़ा सिर्फ़ जिस्मानी इबादत नहीं बल्कि एक रूहानी सफर है। जब इंसान दिनभर खुद को हराम और ग़लत कामों से बचाता है, तो उसके दिल और रूह की सफ़ाई होती है। रोज़ा इंसान को बुराइयों से दूर करता है, नफ़सानी ख़्वाहिशात पर क़ाबू पैदा करता है और इंसान का रब से ताल्लुक़ मज़ीद मज़बूत होता है।


तक़वा का इज़ाफ़ा:--

रोज़े का मक़सद सिर्फ़ भूख और प्यास महसूस करना नहीं, बल्कि तक़वा हासिल करना है। क़ुरआन-ए-करीम में फ़रमाया गया है: "ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़ा फ़र्ज़ किया गया जैसे तुमसे पहले लोगों पर फ़र्ज़ किया गया था, ताकि तुम तक़वा इख़्तियार करो।" (सूरह अल-बक़राह, 2:183)
रोज़ा इंसान के अंदर अल्लाह का डर और उसकी रज़ा हासिल करने की लगन पैदा करता है। जब एक शख़्स सिर्फ़ अल्लाह की ख़ुशी के लिए अपनी ज़रूरतें छोड़ देता है, तो उसकी रूहानी हालत बेहतर होती है और दिल से हराम और नफ़रत की मैल धुल जाती है।


नफ़सानी ख़्वाहिशात पर क़ाबू:--

रोज़ा एक ऐसी इबादत है जो इंसान को नफ़सानी ख़्वाहिशात पर क़ाबू पैदा करने की सलाहियत अता करती है। जब इंसान हराम चीज़ों से दूर रहता है, तो उसका क़ल्ब पाक होता है और नफ़सानी फ़ितने ख़त्म हो जाते हैं। यह तज़किया-ए-नफ़्स का सबसे बेहतरीन तरीक़ा है जो इंसानी ज़िंदगी को बेहतर बना देता है।


सब्र और शुक्र की आदत:--

रोज़ा सब्र और शुक्र का इज़ाफ़ा करता है। जब एक रोज़ेदार भूख और प्यास बर्दाश्त करता है, तो उसके अंदर सब्र की सिफ़त पैदा होती है। यह सब्र हर मुश्किल को आसान बना देता है। इसी तरह, जब इंसान इफ़्तार और सहरी का लुत्फ़ उठाता है, तो उसके अंदर अल्लाह की नेमतों का शुक्र अदा करने का जज़्बा पैदा होता है।


रोज़ा और माफ़ करने का जज़्बा:--

रोज़ा इंसान के अंदर माफ़ करने और दूसरों से अच्छे रवैये इख़्तियार करने का जज़्बा पैदा करता है। जब एक शख़्स अल्लाह की ख़ुशी के लिए अपनी ग़लतियों पर नदामत महसूस करता है और दूसरों को माफ़ करता है, तो उसका दिल रूहानी मैल से पाक हो जाता है।


दुआ और ज़िक्र से रूहानी सफ़ाई:--

रमज़ान के महीने में दुआ और ज़िक्र की अहमियत बढ़ जाती है। सहरी, इफ़्तार और तहज्जुद के वक़्त की गई दुआ क़बूल होती है। रोज़ेदार जब दिल से अल्लाह का ज़िक्र करता है, तो उसकी रूह सुकून महसूस करती है और उसका दिल अल्लाह के क़रीब होता है।


नतीजा:--

रमज़ान का रोज़ा सिर्फ़ एक इबादत नहीं बल्कि रूहानी सफ़ाई का एक तरीक़ा है। यह इंसान को अल्लाह के क़रीब करने का सबब बनता है, तक़वा और सब्र पैदा करता है और नफ़सानी बुराइयों को ख़त्म करता है। जो शख़्स इस महीने को सिर्फ़ भूख और प्यास का महीना समझता है, वह इसके असल मक़सद से दूर है। रमज़ान का रोज़ा हमें एक बेहतरीन मौक़ा देता है कि हम अपनी रूह की सफ़ाई करें और अपनी ज़िंदगी को अल्लाह की रज़ा के मुताबिक़ ढालें।



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