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रमज़ान की रहमतें और हमारी ज़िम्मेदारियां - sunni muslim

 



रमज़ान और उसकी अहमियत 


रमज़ान-उल-मुबारक इस्लाम का एक अज़ीम और मुक़द्दस महीना है, जो सिर्फ रोज़ा रखने का ही नहीं, बल्कि तक़वा, इबादत, सब्र और अल्लाह की क़ुरबत हासिल करने का भी एक बेहतरीन ज़रिया है। यह महीना तमाम मुसलमानों के लिए एक रहमत और बरकत का महीना है, जिसमें अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त अपने बंदों पर बेमिसाल फज़ल और करम फरमाता है। इस महीने में हर नेकी का अज्र बढ़ जाता है और जन्नत के दरवाज़े मुसलमानों के लिए खोल दिए जाते हैं।



रमज़ान की फ़ज़ीलत


रमज़ान की फ़ज़ीलत क़ुरान और हदीस में वाज़ेह तौर पर बयान की गई है। इस महीने की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि इस महीने में क़ुरान-ए-करीम नाज़िल हुआ। अल्लाह तआला फ़रमाता है:

شَهْرُ رَمَضَانَ ٱلَّذِىٓ أُنزِلَ فِيهِ ٱلْقُرْءَانُ هُدًۭى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَـٰتٍۢ مِّنَ ٱلْهُدَىٰ وَٱلْفُرْقَانِ ۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ ٱلشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ ۖ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍۢ فَعِدَّةٌۭ مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ ۗ يُرِيدُ ٱللَّهُ بِكُمُ ٱلْيُسْرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ ٱلْعُسْرَ وَلِتُكْمِلُوا۟ ٱلْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا۟ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَىٰكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ ١٨٥

तर्जमा:- रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुरान नाज़िल किया गया जो लोगों के लिए हिदायत है और हिदायत व फ़ुरक़ान (हक़ और बातिल को अलग करने) की रौशनी है।" (सूरह अल-बक़राह: 185)

हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने फ़रमाया:
"जिस शख्स ने ईमान और सवाब की नीयत से रमज़ान के रोज़े रखे, उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।" (बुख़ारी, मुस्लिम)


रोज़े की अहमियत


रोज़ा सिर्फ भूख और प्यास सहने का नाम नहीं, बल्कि यह एक ऐसी इबादत है जो मुसलमान के सब्र, तक़वा और अल्लाह की रज़ा हासिल करने का सबब बनती है। रोज़ा इंसान की रूहानी और जिस्मानी सफ़ाई का ज़रिया है। यह एक तरीका है जिससे इंसान अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात पर क़ाबू पाता है और अपने रब की तरफ़ मुतवज्जेह होता है। रोज़ा इंसान में हमदर्दी, सब्र और शुक्र का जज़्बा पैदा करता है।


इबादत और दुआ की अहमियत


रमज़ान सिर्फ रोज़ा रखने का महीना नहीं, बल्कि इस महीने में मुसलमान को ज़्यादा से ज़्यादा इबादत और दुआओं में मशगूल रहना चाहिए। इस महीने की हर रात बेहतरीन इबादत का मौक़ा देती है, मगर सबसे अफ़ज़ल रात शब-ए-क़द्र है, जिसमें इबादत का सवाब हज़ारों महीनों की इबादत के बराबर होता है।

हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने फ़रमाया:
"जो शख्स शब-ए-क़द्र में इबादत करे ईमान और सवाब की नीयत से, उसके तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।" (बुख़ारी, मुस्लिम)


रमज़ान और मुसलमानों की ज़िंदगी


रमज़ान मुसलमानों की ज़िंदगी में एक अज़ीम तब्दीली लाता है। यह महीना इंसान को अच्छाई की तरफ़ ले जाता है, बुराइयों से दूर करता है और दिल को रोशन करता है। इस महीने में ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद का जज़्बा बढ़ता है, जिससे मुसलमानों में एक-दूसरे के लिए मोहब्बत और एहसास का जज़्बा बढ़ता है।


ईद-उल-फ़ित्र: रमज़ान का इनाम


रमज़ान के तमाम रोज़े रखने के बाद अल्लाह तआला ने मुसलमानों को ईद-उल-फ़ित्र का दिन इनाम के तौर पर दिया है। यह एक ख़ुशी का दिन है जो बादत, तक़वा और अल्लाह की क़ुरबत का इनाम होता है। इस दिन फ़ित्राना अदा करना ज़रूरी है जो ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद का एक तरीका है |



नतीजा


रमज़ान सिर्फ एक महीना नहीं, बल्कि यह एक नया तरीका है ज़िंदगी को बेहतर बनाने का। यह महीना इंसान को अपनी ग़लतियों से सबक सिखाता है और अल्लाह की रज़ा हासिल करने का मौक़ा देता है। हर मुसलमान को चाहिए कि इस महीने की क़दर करे, अपने रब की इबादत करे और अपनी ज़िंदगी को उसके हुक्म के मुताबिक़ ढाले।
अल्लाह तआला हमें रमज़ान की बरकत से भरपूर फ़ायदा उठाने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन!





ज़्यादा मालूमात हासिल करें:---




 

 

 


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