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गुस्ताखे नबी की एक सज़ा , सर तन से जुदा - ये नारा सबसे पहले कब लगाया गया - Sunni Muslim

 गुस्ताखे रसूल की एक सज़ा , सर तन से जुदा , सर तन से जुदा




Gustakhe Nabi ki ek saza , Sar tan se juda , Sar tan se juda


आज का दौर बढती नफरत के लिहाज़ से इतना डरावना हो गया है जिसके बारे में सोचना समझना एक आम इंसान के लिए मुमकिन ही नहीं रहा | बड़े बड़े जानकार , पढ़े लिखे लोगो का ज़हन भी बड़ी आसानी से इस बढ़ी हुई नफरत का शिकार हो जा रहा है | जिसमे ज्यादाटार वो लोग मुलव्विस है जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ मज़हबी रहनुमा पर बेतुकी बकवास करके अपनी राजनीति को चमकाना है और उसे फरोग देना है |

इसी लिस्ट में आते है वो लोग जो  हमारे आक़ा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खिलाफ उनकी शान के खिलाफ ऐसे अलफ़ाज़ का इस्तेमाल करते है जिससे मुसलमानों के दिलो को ठेंस पहुचती है उसे तकलीफ होती है | जिसके चलते हुज़ूर के दीवाने अपने नबी के नामूस के खातिर सडको पर एह्तेजाज़ करते है | नबी के गुस्ताख के गिरफ्तारी की मांग करते है | और उसी भीड़ में एक नारा लगता है " गुस्ताखे रसूल की एक सज़ा , सर तन से जुदा , सर तन से जुदा " ये नारा आया कहा से , सबसे पहले इस नारे का इस्तेमाल कहा और किस मौके पर किया गया ?

हम इस नारे की बात आगे करेंगे पहले उसके नीव को समझते है |

1947 से पहले जब भारत और पाकिस्तान दो अलग अलग देश नहीं थे भारत में अंग्रेजों की हुकूमत थी और उस दौर में हिन्दू मुसलमान आपस में अक्सर झगड़ते रहते थे और उस लड़ाई में एक दुसरे के मज़हबी पहचान उनके आलायकार को लेकर अनाप शनाप बका करते थे जिसे देखते हुए  साल 1860 में अंग्रेज़ी हुकूमत ने एक क़ानून बनाया " ईशनिंदा क़ानून " और साल 1927 में किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली बात को अपराध के दायरे में रखा और  कानून के मुताबिक़ किसी के मज़हबी रहनुमाओं के ख़िलाफ़ उलटी सीधी बात करने वालो को सज़ा दी जाने लगी | 

पाकिस्तान में ईशनिंदा क़ानून का इतिहास 

अब आता 1947 जिसमे भारत का बटवारा हुआ भारत और पाकिस्तान दो अलग अलग देश बन गए भारत किसी मज़हबी पहचान के साथ अलग नहीं हुआ लेकिन पकिस्तान अपने मज़हबी पहचान पर इस्लामी मुल्क के तौर पर एक अलग देश बना और अग्रेज़ी हुकूमत के ही तर्ज पर ईशनिंदा कानून पकिस्तान में लागू कर दिया गया |

अब दौर आता है पाकिस्तान के आर्मी कमांडर जनरल जिया उल हक़ का  ... जनरल जियाउल हक़ ने इस ईशनिंदा कानून में कई और नयी चीज़े जोड़ी साल 1982 में ईशनिंदा कानून में सेक्शन 295-बी जोड़ा और इसके तहत कुरआन को लेकर कही गयी बेतुकी बातो को अपराध की दायरे में रखा गया। इस कानून के मुताबिक, कुरान की बेहुरमती करने पर उम्र कैद या मौत की सजा हो सकती है। 1986 में ईश निंदा कानून में धारा 295-सी जोड़ी गई और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को लेकर करी गयी गुस्ताखी को अपराध के दायरे में रखा गया जिसके लिए उम्र कैद की सजा या मौत की सजा का कानून बनाया गया | शरीया कोर्ट ने इस कानून को और सख्त बना दिया। और कोर्ट ने ये हुक्म दिया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ-साथ बाकी सभी नबियों के अपमान को भी अपराध के दायरेमें रखा जाए और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ मौत की सजा का कानून हो | 

ईशनिंदा क़ानून के तहत सज़ा 

मई 2020 में 26 साल की एक औरत अनीका अतीक को ईशनिंदा क़ानून के तहत गिरफ्तार किया गया उनपर ये आरोप था की अनीका ने Whatsup पर कुछ ऐसी चीज़े शेयर करी है जिसपे ईशनिंदा क़ानून लागू होता है | इसे लेकर कोर्ट में केस चला और अनीका अतीक को पहले उम्र कैद की सज़ा हुई है और बाद में उन्हें फांसी की सज़ा दी दी गयी |

गुस्ताखे रसूल की एक सज़ा , सर तन से जुदा , सर तन से जुदा पहली बार कब लगा 

बात है साल 2011 की पकिस्तान पंजाब के गवर्नर थे सलमान तासीर , सलमान ने ब्रिटेन से चार्टेड अकाउंटेंट की पढाई करी थी और साल 2011 में वो पाकिस्तान पंजाब सूबे के गवर्नर थे उस टाइम पाकिस्तान में एक ईसाई औरत असिया बीबी को ईशनिंदा क़ानून के तहत सज़ा सुनाई गयी थी और सलमान तासीर उस ईसाई औरत असिया बीबी के सपोर्ट में आ गए उसकी तरफदारी करने लगे यहाँ तक की उससे मिलने जेल में भी चले गए | और यही शुरू हुआ सलमान तासीर के खिलाफ एह्तेजाज़ पकिस्तान की सडको पर पाकिस्तानी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नामूस के नाम पर सड़क पर निकल आये और पूरे पाकिस्तान में इसे लेकर लोगो की तादाद बढती गयी | जिसमे एक नाम था मौलाना ख़ादिम हुसैन रजवी , ख़ादिम हुसैन पकिस्तान का एक ऐसा नाम है जिनके इंतकाल के बाद उनके जनाज़े में बहुत बड़ी तादाद में लोग शामिल हुए थे | 
नबी के नामूस के नाम पर शुरू हुए उस एह्तेजाज़ में दो नारे सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किये जा रहे थे पहला था " नामूसे रिसालत जिंदाबाद " और दूसरा नारा था " गुस्ताखे नबी की एक सज़ा , सर तन से जुदा , सर तन से जुदा " ये नारा सबसे पहले साल 2011 में मौलाना ख़ादिम हुसैन रजवी ने लगाया था | और तब से पुरे दुनिया में जहाँ भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नामूस के साथ खिलवाड़ किया जाता है तो ये नारा गूंजने लगता है | 

हलाकि बाद में सलमान तासीर को उन्ही के एक सिक्योरिटी गार्ड मुमताज़ कादरी ने क़त्ल कर दिया और पाकिस्तान अदालत ने मुमताज़ क़ादरी को फांसी की सज़ा दे दी |

जहाँ तक बात सर तन से जुदा नारे की है तो मुसलमानों को ख़ास तौर पे अपने ज़हन में ये बात रखनी चाहिए की भारत एक जम्हूरी मुल्क है यहाँ मुल्क का अपना एक कानून है | ऐसे में मुसलमान खुद अपने हाथ में कानून न लें अगर किसी की कोई बात नामूसे रिसालत के खिलाफ होती है तो आप एह्तेजाज़ करे वो आपका हक़ है और जिसने भी गुस्ताखी करी है उसके खिलाफ सजा का मुतालबा करें लेकिन कानून को कतई अपने हाथ में न लें | पत्थरबाजी न करें , किसी पे हमला न करें , मुल्क के अशिया को नुक्सान न पहुचाएं क्योकि जो चीज़ आप आग के  हवाले कर रहे होते हो वो चीज़ आपके ही दिय गए टैक्स के पैसे से आई है और आपकी ही सहूलियत के लिए सरकार मुहय्या करवाती है | लिहाज़ा इन बातो का ख़ास ख़याल रखें | 


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