दुरूद शरीफ न पढने वालो से हुज़ूर ﷺ कि नाराज़गी
DUROOD SHAREEF KI FAZILAT
दुरूद शरीफ की फ़ज़ीलत तो बहुत सारी है दुरूद पढने के जो इनआमात हमें दिए गए है वो हमारी खुशनसीबी है तो आइये जानते है दुरूद की बरक़त क्या है ?
दुरूद न पढने वालो से हुज़ूर की नाराज़गी
एक आदमी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूद शरीफ नहीं भेजता था एक रात उसने ख्व़ाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा आप नें उसकी तरफ तवज्जोह नही फ़रमाई उस आदमी नें अर्ज़ किया या रसूलल्लाह क्या आप मुझसे नाराज़ हैं जो आपने मुझपे तवज्जोह नहीं फरमाई ? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नें जवाब दिया नहीं मैं तुम्हे पहचानता ही नहीं हूँ उस शख्स ने फिर से सवाल किया या रसूलल्लाहआप मुझे कैसे नहीं पहचानते जब की उलमा कहते हैं की आप अपने उम्मतियों को उनकी माँ से भी ज़्यादा पहचानते हैं आप नें फ़रमाया उलमा नें सच कहा है लेकिन तूने मुझे दुरूद भेज कर अपनी याद नहीं दिलाई और जो मेरा उम्मती मुझ पर जितना दुरूद भेजता है में उसे उतना ही पहचानता हूँ |
उस शख्स के दिल में यह बात बैठ गई और उसने रोजाना सौ मर्तबा दुरूद पढ़ना शुरू कर दिया कुछ मुद्दत बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीदार से फ़िर ख्व़ाब में मुशर्रफ़ हुआ आप नें फरमाया में अब तुम्हे पहचानता हूँ और मै तेरी शफ़ाअत करूंगा इस लिए की वह रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुहिब बन गया था
फरमाने इलाही
अल्लाह तआला फरमाता है " ऐ रसूल उनसे कह दीजिये कि अगर तुम अल्लाह को दोस्त रखते हो तो मेरी पैरवी (इताअत) करो अल्लाह तआला तुमको दोस्त रखेगा " इस आयत की शाने नुज़ूर यह है की जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नें कअब बिन अशरफ और उसके साथियों को इस्लाम की दावत दी तो वो कहनें लगे हम तो अल्लाह तआला के बेटों की तरह हैं और उससे बहुत मोहब्बत करते हैं तब अल्लाह तआला नें अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा उनसे कह दीजिए अगर तुम अल्लाह तआला से मोहब्बत करते हो तो मेरी पैरवी करो मै अल्लाह का रसूल हूँ मै तुम्हारी तरफ उसका पैग़ाम पहुचाने वाला और तुम्हारे लिए अल्लाह की हुज्जत बन कर आया हूँ मेरी पैरवी करोगे तो अल्लाह तुम्हे महबूब बनाएगा और तुम्हारे गुनाहों को माफ़ कर देगा वह ग़फूरुर रहीम है ( यानी बख्शानें वाला और रहम करनें वाला है ) मोमिनों की मोहब्बत अल्लाह के साथ यह है की वह उसके हुक्मों पर अमल करे उसकी इबादत करे और उसकी रज़ा का तलबगार रहे और अल्लाह तआला की मोमिनों के साथ मोहब्बत यह है कि वह उनकी तारीफ़ करे उन्हें सवाब अता फ़रमाये उनके गुनाहों को माफ़ करे और उन्हें अपनी रहमत से बेहतरीन तौफीक़ दे इफ्फ़त व इस्मत अता फ़रमाये |
फरमाने इमामे गज़ाली रहमतुल्लाह अलैह
इमामे गज़ाली रहमतुल्लाह अलैह इह्याउल उलूम में फ़रमाते हैं-- जो शख्स चार चीज़ों के बगैर चार चीजों का दावा करता है वह झूठा है |
- जो जन्नत का दावा करता है मगर नेकी नहीं करता |
- जो शख्स नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत का दावा करता है मगर आलिमों और नेक लोगों को दोस्त नहीं रखता |
- जो आग से डरने का दावा करता है मगर गुनाह नहीं छोड़ता |
- जो शख्स अल्लाह की मोहब्बत का दावा करता है मगर तकलीफों की शिकायत करता है जैसा कि हज़रते राबिया फ़रमाती हैं ( मफ़हूम नीचे मुलाहज़ा करें )
- तू अल्लाह तआला की नाफ़रमानी करता है हालांकि ज़ाहिर में तू ख़ुदा की मोहब्बत का दावेदार है मुझे ज़िन्दगी की कसम ! यह अनोखी बात है |
- अगर तेरी मोहब्बत सच्ची होती तो तू उसकी पैरवी करता क्यों कि मुहिब जिससे मोहब्बत करता है उसकी फरमाबरदारी करता है |
और मोहब्बत की पहचान महबूब की मुवाफ़क़त करने और उसके ख़िलाफ़ न करनें में है |
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