Header Ads Widget

सूरह इसराफ़ील की हक़ीक़त | Amazing Fact about Islam | sunni muslim

 सूरह इसराफ़ील की हक़ीक़त | ये आप नहीं जानते होंगे

इस्लाम के बारे में कुछ हैरतंगेज़ मालूमात

Amazing fact about Islam


हज़रते अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है : हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब अल्लाह तआला ने ज़मीन व आसमान को पैदा फ़रमाया और उसके बाद सूर को पैदा फरमाया और इसराफ़ील को दिया | वो उसे मुंह में रख कर , अर्श की तरफ़ देखते हुए खड़ा है कि क़ब उसे सूर फूंकने का हुक्म मिलता है ।

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं : मैंने अर्ज़ की या रसूलल्लाह! सूर क्या है ? आपने फरमाया वो बैल का एक सींग है । मैंने कहा वह कैसा है ? आपने फ़रमाया बहुत बड़े दाइरे वाला है, क़सम है उस ज़ात की जिसने मुझे हक़ के साथ मबऊस फरमाया है, उसके दायरे का घेरा ज़मीन और आसमान की चौड़ाई के बराबर है, सूर को तीन मर्तबा फूंका जाएगा |

  1. पहली बार घबराहट के लिए
  2. दूसरी बार मौत के लिए
  3. तीसरी बार क़ब्रों से उठने के लिए
फिर रूहें ऐसे निकलेंगी जैसे शहद की मक्खियां, वो ज़मीन व आसमान के बीच की खाली जगह को भर देंगी और नाक के रास्ते जिस्मों में दाख़िल हो जायेंगी, फिर फ़रमाया सब से पहले मेरी क़ब्र फटेगी |


ये भी पढ़े :

  1. रमज़ान के महीने में लोगो की कुछ गलतफहमियां और उसके जवाब
  2. रमज़ान के रोज़े रखो लेकिन ये 4 बातें जान लो


दूसरी रिवायत में है, जब सूर फूका जायेगा तब अल्लाह तआला जिबरईल मीकाईल और इसराफ़ील को ज़िन्दा करेगा, वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्रे अनवर की तरफ़ आयेंगे, उनके साथ बुराक़ और जन्नती लिबास होंगे, फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्रे अनवर फटेगी और आप जिबरीले अमीन को देख कर फ़रमायेंगे कि यह कौन सा दिन है ? जिबरील अर्ज करेंगे, यह क़यामत का दिन है, यह मुसीबत का दिन है, यह सख़्ती का दिन है, आप फ़रमायेंगे ऐ जिबरील! अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत के साथ कैसा सुलूक किया है ? जिबरील अर्ज करेंगे आप को बशारत हो कि सबसे पहले शख़्स आप हैं जिन की क़ब्र फटी है ।

 हज़रते अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है :  हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला फ़रमाएगा ऐ जिन्नात और इंसान मैंने तुम्हें नसीहत की थी, लो तुम्हारे नामए आमाल में तुम्हारे आमाल दर्ज हैं, जो अपना सहीफ़ा अच्छा पाये वो  अल्लाह की हम्द करे और जो उसे बेहतर न पाये वो अपने आप पर मलामत करे ।

 जनाबे याह्या बिन मआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु से मन्कूल है : कि उन्होंने अपनी मजलिस में यह आयत सुनीं-

 उस दिन हम परहेज़गारों को रहमान की तरफ़ जमा करेंगे, वक़्द की सूरत में । यानी वह सवार होकर अल्लाह की बारगाह में हाज़िर होंगे "और हम मुजरिमों को जहन्नम की तरफ प्यासा हाकेंगे" यानी वह पैदल और प्यासे अल्लाह की बारगाह में जायेंगे, तो आप ने फ़रमाया ऐ लोगो! नेकी और भलाई में आगे आगे रहो । कल तुम हश्र के दिन क़ब्रों से उठाए जाओगे और कई तरफ़ से फौज दर फ़ौज आओगे, अल्लाह के सामने अकेले-अकेले खड़े होगे और तुम से एक-एक हर्फ़ का सवाल किया जाएगा, नेक लोग अल्लाह की बारगाह में सवार होकर गिरोह दर गिरोह आयेंगे, बदकारों को पैदल और प्यासा लाया जाएगा और लोग जमाअत दर जमाअत जहन्नम में दाखिल होंगे।

 ऐ भाईयो! तुम्हारे आगे एक ऐसा दिन है जो तुम्हारे साल व महीने के अंदाज़ों के मुताबिक पचास हज़ार साल का है जो हलचल मचाने वाला और भाग दौड़ का दिन है जिस दिन लोग ख़ालिके काइनात की बारगाह में खड़े होंगे जो हसरत, अफ़सोस, नुक्ता चीनी, मुहासबा, चीख व पुकार, मुसीबत, सख़्ती और दोबारा ज़िन्दा होने का दिन है, जिस दिन इंसान अपने किये हुए आमाल देखेगा, अफ़सोस और पछतावे का दिन, जिस दिन कुछ चेहरे सफ़ेद और कुछ काले होंगे, जिस दिन किसी को माल और औलाद फायदा नहीं देगी, मगर जो सही दिल लेकर आएगा वही फायदा पाएगा, इस दिन ज़ालिमों को माफी कोई फायदा नहीं देगी और उनके लिए लानत और बुरा ठिकाना होगा।

जनाबे मक़ातिल बिन सुलैमान रज़ियल्लाहु अन्हु का क़ौल है: कि क़यामत के दिन मलूक सौ बरस मुकम्मल ख़ामोश रहेगी और लोग सौ साल तक तारीकियों में हैरान व परेशान रहेंगे और सौ साल वो एक दूसरे पर चढ़ दौड़ेगे, रब के यहां झगड़े करेंगे, क़यामत के एक दिन दिन की मुद्दत पचास हज़ार साल की होगी, मगर मोमिन मुख़्लिस पर ऐसे गुज़रेगा, जितना हल्की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ने में वक़्त खर्च होता है ।

 फरमाने नबवी है कि बन्दे के क़दम उस वक़्त तक नहीं हिलेंगे जब तक कि उस से चार चीज़ों का सवाल नहीं कर लिया जाएगा,

  1.  उसने अपनी उम्र कैसे खर्च की ? 
  2. अपने आप को किस चीज़ में मसरूफ़ रखा ?  
  3.  अपने इल्म पर कितना अमल किया ?
  4.  और दौलत कैसे कमाई और कैसे खर्च की ?
हज़रते इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है: हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने हर एक नबी को कुबूल होने वाली एक- एक दुआ अता फ़रमायी थी, उन सब ने अपनी अपनी वो दुआ दुनिया में मांग ली मगर मैंने अपनी दुआ को क़यामत के दिन अपनी उम्मत की शफाअत के लिए महफूज़ रख लिया है। ऐ रब्बे ज़ुलजलाल! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हुरमत व तौकीर के तुफ़ैल हमें भी उनकी शफाअत से महरूम न फरमा | आमीन

Post a Comment

0 Comments