एक नौजवान का इबरत अंगेज़ वाकिया
अल्लाह किस कदर रहमान है इस हिकायत से समझें
हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम वहाँ तशरीफ़ ले गए और उसको उस बस्ती से निकाल दिया जिसके बाद वो दूसरी बस्ती में रहने लगा अल्लाह का फिर से हुक्म हुआ की ऐ मूसा ! उसे उस बस्ती से भी निकाल दीजिये | जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसको उस बस्ती से भी निकाल दिया तो उसने एक ऐसे गार ( गुफा ) में ठिकाना बनाया जहाँ ना कोई इंसान था और न ही किसी चरिंद परिन्द का गुज़र था आस पास में न ही कही आबादी थी और न दूर दूर तक हरियाली का कोई पता था |
उस गार में आकर वह जवान बीमार हो गया उसकी तीमारदारी ( देखरेख ) के लिए कोई शख्श भी उसके आस पास मौजूद न था जो उसकी खिदमत करता वो कमज़ोरी से ज़मीन पर गिर पडा और कहने लगा काश इस वक़्त अगर मेरी माँ मेरे पास मौजूद होती तो मुझपर शफ़क़त ( मेहरबानी ) करती और मेरी इस बेकसी और बे-बसी पर रोती | अगर इस वक़त मेरे पास मेरा बाप होता तो मेरी निगहबानी , ( देख रेख ) करता | अगर इस वक़्त मेरे पास मेरी बीवी होती यो मेरी जुदायी पर रोती अगर इस मेरे बच्चे मेरे पास मौजूद होते तो कहते ऐ रब ! हमारे आजिज़ गुनाहगार , बदकार और मुसाफिर बाप को बख्श दे जिसे पहले तो शहर बदर किया गया और फिर दूसरी बस्ती से भी निकाल दिया गया था | और अब वह गार में भी हर एक चीज़ से ना उम्मीद होकर दुनिया से आख़िरत की तरफ चला है और वह मेरे जनाज़ा के पीछे रोते हुए चलते | फिर वह नौजवान कहने लगा ऐ अल्लाह ! तूने मुझे माँ बाप , बीवी बच्चो से तो दूर किया है मगर अपने फज्लो करम से दूर न करना तूने मेरा दिल अजीजों की जुदायी में जलाया है अब मेरे सरापा को मेरे गुनाहों की वजह से जहन्नम में न जलाना |
उसी दम ( वक़्त ) अल्लाह तआला ने एक फ़रिश्ता को उसके बाप के हमशकल बनाकर एक हूर उसकी माँ और एक हूर को उसकी बीवी की हमशक्ल बना कर और गिल्माने जन्नत ( जन्नत के खादिम ) को उसके बच्चो की शक्ल में भेज दिया यह सब उसके करीब आकर बैठ गए और उसकी बेहद तकलीफ पर अफ्सोस और आह व ज़ारी ( रोना व चिल्लाना ) करने लगे | जवान उन्हें देख कर बहुत खुश हुआ और उसी ख़ुशी में उसका इंतकाल हो गया |
तब अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की तरफ फिर से वही नाजिल की और कहा ऐ मूसा ! फला गार की तरफ जाओ वहाँ हमारा एक दोस्त मर गया है तुम उसके दफ़न व कफ़न का इंतजाम करो | हुक्मे इलाही के मुताबिक़ हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम जब गार में पहुचे तो उन्होंने वहां उसी जवान को मरा हुआ पाया जिसको उन्होंने पहले शहर और फिर दूसरी बस्ती से भी निकाला था | उसके पास हूरे ताजियत करने वालो की तरह बैठी थी |
मूसा अलैहिस्सलाम ने बारगाहे इलाही में अर्ज़ किया ऐ रब्बुल इज्ज़त ! ये तो वही जवान है जिसे मैंने तेरे हुक्म से पहले शहर से फिर बाद में बस्ती से निकाल दिया था | अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने फरमाया ऐ मूसा ! मैंने उसके बहुत ज्यादा रोने और अजीजों की जुदायी में तड़पने की वजह से उसपर रहम किया है और फ़रिश्ता को उसके बाप की शक्ल में और हूरो गिलमा को उसकी माँ बीवी और बच्चो के हमशक्ल में बनाकर भेजा है जो ग़ुरबत में उसकी तकलीफों पर रोते है | जब ये मरा तो इसकी बेचारगी पर ज़मीनों आसमान वाले रोये और मै अरहमरराहेमीन फिर क्यों न उसके गुनाहों को माफ़ करता |
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