दुनियादार मालामाल होते है जबकि दीनदार के पास कोई दौलत नहीं होती - ऐसा क्यों होता है ?
अल्लाह के नबी ने बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त में अर्ज़ की ऐ आलिमुल गैब ! इसमें क्या राज़ है ?
अल्लाह तआला नें फ़रिश्तों को हुक्म दिया की मेरे नबी को उन दो शख्स केआख़िरत का हाल दिखाओ जब उन्होंने पहले शख्स का हाल देखा तो वो अल्लाह तआला के नज़दीक इज़्ज़त व वक़ार के साथ था और जब दुसरे शख्स का हाल देखा तो वो ठीक नहीं था ये सब देखने के बाद अल्लाह के नबी बेसाख्ता कह उठे इलाहल आलमीन ! मै तेरी तक़सीम पर राज़ी हूँ |
नबी का फ़रमान है : मैंने जन्नत को देखा उस में अक्सर फ़क़ीर थे, मैंने जहन्नम को देखा उसमें अक्सर मालदार और औरतें थीं
एक रिवायत में आता है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दरियाफ़्त किया मालदार कहा हैं ? तो मुझे बताया गया उन्हें मालदारी ने गिरफ्तार कर रखा है |
एक दूसरी हदीस में है : मैंने जहन्नम में अक्सर औरतों को देख कर कहा ऐसा क्यों है ? तो मुझे बताया गया यह उनकी सोने और खुशबुओं से मुहब्बत की वजह से है |
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का क़ोल है : कि मालदार बहुत दुशवारी के साथ जन्नत में दाख़िल होगा |
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहले बैत रज़िअल्लहु अन्हुम से मरवी है : आप ने फ़रमाया जब अल्लाह तआला किसी इंसान से मुहब्बत करता है तो उसे आज़माइश में डाल देता है और जब किसी से बहुत ज्यादा मुहब्बत करता है तो उसके लिए ज़खीरा ( जमा ) कर देता है पुछा गया हुज़ूर ! ज़खीरा कैसे होता है ? आपने फ़रमाया उस इंसान के माल और औलाद में से कुछ बाक़ी नहीं रहता |
हदीस शरीफ में है की " जब तू फ़क्र को अपनी तरफ़ मुतवज्जह पाये तो उसे ख़ुश आमदीद कहो और ऐ नेकियों की अलामत कह कर उसका ख़ैरे मक़दम करो और जब तुम माल व दौलत को अपनी तरफ आता देखो तो कहो, दुनिया में मुझे यह किसी गुनाह की जल्दी सज़ा मिल रही है "
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से अर्ज़ किया इलाही मखलूक में तेरे दोस्त कौन से हैं ताकि में उनसे मुहब्बत करूँ अल्लाह तआला ने फ़रमाया फ़क़ीर और फ़क़ीर |
हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का फ़रमान है में फ़क्र दोस्त रखता हूँ और मालदारी से नफ़रत करता हूँ और आपको ऐ मिस्कीन कह कर बुलाया जाना सब नामों से अच्छा लगता है |
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस बात को मान लिया क्योंकि इन फ़क़ीरों के लिबास से उन दोलतमंदों को बदबू आती थी | इन फ़क़ीरों के लिबास ऊन के थे और पसीना आने की सूरत में उनके कपड़ों से जो बू आती थी वह अकरा बिन हाबिस तैमी, अयैनह बिन हिसन फज़ारी, अब्बास बिन मुराद सलमी और दुसरे अरब के दोलतमन्दों को बहुत बेचैन कर दिया करती थी |
चुनान्चे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस बात पर रज़ामंदी के सबब क़ुरआन पाक की यह आयत नाज़िल हुई |
अल कुरआन : " और अपनी जान उन से मानूस रखो जो सुबह व शाम अपने रब को पुकारते हैं उसकी रज़ा चाहते हैं और तुम्हारी आँखें उन्हें छोड़ कर ऊपर न पड़ें, क्या तुम दुनिया की ज़िन्दगी का सिंगार चाहोगे, उसका कहा न मानो जिसका दिल हमने अपनी याद से ग़ाफिल कर दिया और वह अपनी ख्वाहिश के पीछे चला और उसका काम हद से गुज़र गया और फरमा दो की हक़ तुम्हारे रब की तरफ से है तो जो चाहे ईमान लाये और जो चाहे कुफ्र करे |
लिहाज़ा आपको चाहिए की आप वो काम करो जिसका वाहिद मकसद सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की रज़ा हो | और जिस दिन आपने अल्लाह की रज़ा को अपना मकसद बना लिया उस दिन आप दुनिया में भी कामयाब हो जायेंगे और आपकी आख़िरत भी सवंर जाएगी |
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