आज का मुसलमान हर ऐतबार से कमज़ोर क्यों है ? और उसकी कमज़ोरी दूर करने का सही रास्ता क्या है ?
आज का मुसलमान कमज़ोर और लाचार क्यों है ? इस बात को समझने से पहले आइये आपको इस कमज़ोरी के कुछ बुनयादी वजहों से आगाह करते है |
आज हम मुसलमान कुरआन में मरने की सहूलियत तो तलाश करते है लेकिन उसी कुरआन से जीने का ढंग नहीं सीखना चाहते है | काश हमने ज़िन्दगी जीने का सलीका , ज़िन्दगी जीने का तरीका कुरआन से सीख लिया होता तो आज हमारे हालात इतने बदतर न होते |
हमारे प्यारे आका हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : एक वक्त आएगा जब इस्लाम सिर्फ नाम का रह जायेगा कुरआन सिर्फ रस्म के तौर पर पढ़ा जायेगा और मस्जिदे जेबों जीनत के लिहाज़ से तो आबाद होंगी लेकिन हिदायत के नूर से खाली होंगी |
अब आप आज के दौर पर गौर करो "क्या वो वक्त आ नहीं गया है" जब हम कुरआन को सिर्फ रस्मन पढ़ रहें है | कुरआन के पैग़ाम से हमें कोई मतलब ही नहीं है , कुरआन पर अमल करने की हमारी कोशिश ही नहीं है | हम अपनी ज़िन्दगी जीने के तरीको को कुरआन के मुताबिक़ ढालने की कोशिश ही नहीं करते है |
जबकि अगर आप हम और ये मुआशरा वो पुराना मुआशरा हो जाए जिसमे लोग कुरआन के पैग़ाम के मुताबिक़ अपनी ज़िन्दगी गुज़ारा करते थे | काश ऐसा हो जाए तो हमारी ज़िन्दगी से तकलीफें , हमारी परेशानियां , हमारे हालात बदलने में देर न लगेगी और हमारी ज़िन्दगी में भी बहारें आ जायेंगीं | ये ज़िन्दगी के सारे दुःख , सारी परेशानिया सिर्फ इसीलिए है क्योकि हम कुरआन से हटें हुयें है और हमने कुरआन को सिर्फ बतौरे रस्म अपनाया हुआ है | हम कुरआन को रस्मन पढ़ रहे है वरना ये कुरआन तो मुर्दा दिलों में ज़िन्दगी फूकनें वाला है |
आपने कई बार सुना होगा की " हजरत उमर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलाही वसल्लम के क़त्ल के इरादे से हाथ में नंगी तलवार लेकर निकलते है लेकिन जैसे ही सुरह ताहा की चंद आयतें उनके कानों में पड़ती है तो उनका क़त्ल करने का मंसूबा ही बदल जाता है | ये कुरआन की बरक़त है |
हजरते उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लहु अन्हु के दौरे खिलाफत में उस वक्त मस्जिदे नबवी में औरते भी नमाज़ पढ़ती थी और मर्द भी नमाज़ पढ़ते थे ( हलाकि बाद में हालात को देखते हुए औरतो को मस्जिद में बाजमात नमाज़ पढने से रोक दिया गया ) लेकिन उस दौर में जब औरते मस्जिद में मर्दों के साथ नमाज़ पढने जाया करती थी तब एक औरत को अल्लाह ने बेहद खूबसूरत शक्ल से नवाज़ रखा था वो भी मस्जिद में नमाज़ पढने आया करती है एक दिन जब वो नमाज़ पढने आ रही थी तो एक नौजवान लड़का उसके सामने आ कर खड़ा हो जाता है और ये सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा लेकिन एक दिन वो खुबसूरत औरत रूकती है और उस लड़के से पूछती है की तुम मेरा रास्ता क्यों रोक देते हो तो उस नौजवान लड़के ने अपने दिल की ख्वाहिश का इज़हार किया और बोला मै तुम्हारा मतवाला हूँ तुम्हे बहुत चाहता हूँ तेरी एक एक अदा पर सौ सौ बार कुर्बान होने के लिए सामने आकर खड़ा हो जाता हूँ | उस हसीन औरत ने सुना और कहा ठीक है लेकिन पहले मेरी एक शर्त पूरी कर दो मै तुम्हारी हर ख्वाहिश तुम्हारी हर बात को मानूंगी | लड़के ने कहा कहो .. मै तुम्हारी सारी शर्ते मानने को तैयार हूँ मै तेरे लिए आसमान से तारे भी तोड़ लाऊंगा | औरत ने कहा मेरी कोई बहुत लम्बी चौड़ी शर्त नहीं बस मेरी एक ही आरज़ू है की " तुम 40 दिन तक हजरत उमर के पीछे नमाज़े पढ़ लो" उसके बाद जो कहोगे मै मानने के लिए तैयार हूँ | लड़के ने कहा ये कौन सा बहुत मुश्किल काम है ये तो बड़ा आसान है अगर सिर्फ 40 दिन की नमाज़ से मुझे तुम मिल जाती हो तो मै 40 दिन क्या 40 साल नमाज़े पढने के लिए भी तैयार हूँ |
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शर्त के मुताबिक़ 40 दिन वो जवान उमर के पीछे नमाज़े पढता रहा और जब 40वें दिन की आखरी नमाज़ पढ़कर वो नौजवान वापस जा रहा था तो रास्ते में वही हसीन , खूबसूरत औरत उसी जगह पर अपने वादे के मुताबिक़ खड़ी थी | वो जवान लड़का नज़र झुका कर वहा से गुजरने लगा तो औरत ने कहा ओ नौजवान मै वादे के मुताबिक़ यहाँ खड़ी हूँ और तेरी सारी बात और सारी खवाहिशे मानने को तैयार हूँ | लड़के ने जवाब दिया "ओ खूबसूरत औरत अब तेरी ज़रुरत नहीं रही उमर ने दिल का ताल्लुक रब से जोड़ दिया है |
अब आप गौर करो अगर 40 दिन नहीं बल्कि 40 साल कोई हमारे पीछे पढ़ें लेकिन फिर भी उसमे तब्दीली न आये तो हमें सोचना चाहिए | वो जवान 40 दिन नमाज़ पढ़ा , हजरत उमर की ज़बान से कुरान निकला और उसके दिल में पेवश्त हो गया उसके दिल की दुनिया बदल गयी | जबकि आज सालो साल लोग नमाज़ पढ़ते है कुरान सुनते है लेकिन उनका हाल जस का तस रहता है उनमे कोई तब्दीली नज़र नहीं आती है और इसकी वजह सिर्फ एक है की " हम कुरआन सिर्फ रस्मन पढने लगे है "
आज मुसलमानों के आज़माइश के मरहले तवील होते चले जा रहे है उसका एक सबब ये है की जो उम्मत के रहनुमा हैं वो दर्द की दौलत से खाली हैं |
वाईज़े कौम कि पुख्ता ख्याली न रही
बरक़े तबयी न रही शोला मीकाली न रही
रह गयीं रस्मे अजां रूहे बिलाली न रही
फलसफा रह गया तल्कीने गज़ाली न रही
आज हम मुसलामानों के अन्दर कुछ नहीं रहा , दम , ख़म ही नहीं रहा वरना इस उम्मत का बिखरा हुआ मुसलामन आज भी मुत्तहिद हो सकता था आज पूरी उम्मत किस तरह धक्के खा रही | वो हालात किसी से छिपे ढके नहीं है कभी हमारा किरदार लोगो को ज़िन्दगी की राहे दिखाया करता था जबकी आज हमें देख कर लोग दीन से बद्ज़न होते चले जा रहे है |
हमारे आक़ा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत पर एक किताब लिखी गयी है " अरब का चाँद " जिसे किसी मुसलमान ने नहीं बल्कि एक हिन्दू स्वामी लक्षमण प्रशाद ने लिखा है | जो हमारे हिन्दुस्तान के ही रहने वाले है | स्वामी लक्ष्मण प्रसाद से एक Interview में पूछा गया आपने हुज़ूर की सीरत पे इतनी अच्छी किताब लिखी , इतना अच्छा काम किया तो आप कलमा पढ़ कर मुसलमान क्यों नहीं बन जाते |
स्वामी लक्ष्मण प्रशाद ने जो जवाब दिया वो हमारी आँखे खोलने के लिए काफी है .. उनका जवाब मुसलमानों के मुंह पर एक ऐसा तमाचा है जिसकी गूँज जल्दी ख़तम होने वाली नहीं ... स्वामी लक्षण प्रसाद ने कहा " जब मै हुज़ूर की सीरत को लिखने बैठा बड़ी बड़ी किताबों को पढ़ा और हुज़ूर की ज़िन्दगी का हर पहलू देखा तो मेरे दिल ने कहा मै देर क्यों कर रहा मुझे तुरंत कलमा पढ़ कर मोहम्मद अरबी का गुलाम बन जाना चाहिए लेकिन जब मैं आज के मुसलामानों का किरदार देखता हूँ तो कहता हूँ मै हिन्दू ही ठीक हूँ "
हमारा किरदार हमारा तरीका लोगो के ईमान के रस्ते में रुकावट बना हुआ है अगर हम अपने किरदार की बात करें तो उसे एक बात से समझा जा सकता है की आज पब्लिक टॉयलेट में रखें लोटे को भी बाँध के रखा जाता है की कहीं हम उसे भी न चुरा ले जाएँ | अब आप गौर करो जिस कौम के ये हालात हों क्या वो कौम सुकून से ज़िन्दगी गुज़ार सकती है ? अपने हक़ के लिए आवाज़ बुलंद कर सकती है ? , अपने मसाइल का हल तलाश कर सकती है ? लोगो के आँखों में आँखे डाल कर बात कर सकती है ? नहीं ...
आज हमारे पास ईमान की वो हरारत ही न बाकी रही वो तरीका ही नहीं बाकी रहा , वो रौशनी और वो नूर ही नहीं रहा | कुरआन ने जो हमें ज़िन्दगी गुज़ारने का तरीका दिया है हमारे पास वो तरीका ही नहीं रहा |
लिहाज़ा मेरे मुसलमान भाइयों पहले अपने अन्दर के हालात बदलो बाहर के हालात खुद बा खुद सवरतें , सुलझते चले जायेंगे |
अल्लाह हम सबको को कहने सुनने , पढने से ज्यादा अमल करने का आदी बनाये : अमीन
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